Best Motivational Story of Hope | शुभ नई सुबह | Best Motivational Story with Moral in Hindi #motivationalblogs #motivationalstory #motivationalstoryhindi
लखन नाम का एक व्यक्ति था जो खुद जूते बनाकर बेचने का काम करता था। उनका एक छोटा सा परिवार था। दो बच्चे और उनकी पत्नी। कमाई का एक मात्र जरिया था जूते बेचना। उससे जो भी पैसा आता था उसे घर चलाने के लिए खर्च कर दिया जाता था।
लखन रात में जूते-चप्पल बनाता था और सुबह से ही जूते बेचने चला जाता था। शाम को जब वह घर लौटता तो बच्चों के लिए कुछ न कुछ लेकर आता जिससे बच्चे भी बहुत खुश होते थे। लखन को कोई बड़ा लालच नहीं था। जो कुछ मिलता उसी में खुश रहता था। वह हमेशा सकारात्मक भाव से रहता था।
एक दिन हुवा यूँ, कि हमेशा की तरह लखन उस दिन भी जल्दी उठ जाता है और जूते बेचने चाला जाता है। लेकिन उनके जूते कोई नहीं खरीदता। घूमते-घूमते शाम हो जाती है, लेकिन एक भी जोड़ी जूते नहीं बिकते। जिस वजह से हताश हो कर वह घर लौटता है। लखन जब घर गया तो उसके बच्चे दरवाजे के पास खड़े होकर बात कर रहे थे कि आज बापू क्या लाएंगे?" लखन को देखते ही बच्चे दौड़ते हुए आते हैं और पूछने लगे, बापू हमारे लिए क्या लाए? लखन कहते हैं, ''मैं आज कुछ नहीं ला पाया, कल ज़रूर लाऊंगा.'' यह सुनकर बच्चे उदास हो जाते हैं और चुपचाप अपने कमरे में चले जाते हैं।
काफी दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा। हर रोज़ लखन हताश हो कर खाली हाथ घर लौटता। उसकी उदासी को देख कर एक दिन उसकी पत्नी पूछती है, "क्या हुआ?" तब लखन ने दबी हुई आवाज में कहा, "मैं कई दिनों से जूते बेचने जा तो रहा हूं लेकिन पता नहीं क्यों! बिक नहीं रहे हैं।" यह सुनकर उसकी पत्नी ने दिलासा देते हुए कहा, “चिंता मत कीजिये, यह कल बिक जाएंगे! अब खाना खा लीजिये।" लखन भी यही सोचता है, कि शायद कल की नई सुबह शुभ हो और उनकी आशा पर खरी उतरें। यह सोचकर वह जूते बनाने लगता है। इसके बाद वह सो जाता है।
अगले दिन, लखन जल्दी उठता है और जूते बांटने के लिए निकल जाता है, लेकिन फिर एक बार वही होता है, जूते बिक नहीं पाते। फिर से वह खाली हाथ घर आता है। और हर दिन की तरह लखन को देखकर बच्चे दौड़ते हुए आते हैं और पूछते हैं, "बापू हमारे लिए क्या लाए?" लखन बच्चों की ओर देखता है और कहता है, "बेटा, मैं आज फिर से भूल गया, मैं कल जरूर कुछ लाऊंगा!" यह सुनकर बच्चे फिर मायूस हो जाते हैं। और बिना कुछ कहे वापस चले जाते हैं।
लखन सोचता है कि "कोई मेरे बनाएं जूते क्यों नहीं खरीद रहा! मैं कल दूसरी जगहों पर जाऊंगा और जूते बेच कर वापस आऊंगा!" लखन रात में जूते बनाता और सुबह बांटने जाता। लखन रोज जूते बांटने जाता था लेकिन खाली हाथ लौट आता था।
इस प्रकार 1 महीना बीत गया और दीपावली का समय आ गया। उसकी पत्नी कहती है, "दो दिन में दिवाली है और घर में एक रुपया भी नहीं है!" लखन कहते हैं, "चिंता मत करो, आज भले ही कुछ नहीं हो पाया, शायद कल की सुबह शुभ हो! शायद कल कुछ बिक्री हो जाए। फिर से मन मे कल की आशा लेकर वह जूते बनाने लगा। बनाते-बनाते उन्होंने सोचा, "अगर मैं जूतों की बनावट में कुछ नया करूँ तो शायद कुछ जुते बिक जाए।" इसी के साथ वह जूते बनाने लगा।
उस रात वह जूते की बनावट को नए ढंग से बनाता है और सुबह फिरसे उन्हें बेचने निकल जाता है। और आपको शायद ही यकीन हो पाएगा, कि उस दिन सुबह से दोपहर होने तक में उनके सारे जूते बिक जाते हैं। उसकी खुशी की कोई सीमा नहीं रहती। वह बाजार से बच्चों और पत्नी के लिए नए कपड़े खरीदता है। वह घर जाते ही बच्चों और पत्नी को तोहफे देता हैं जिसे देखकर बच्चे और पत्नी दोनों खुश हो जाते हैं। लखन ने तोहफा देते हुए अपनी पत्नी से कहा, "आज सारे जूते बिक गए और साथ ही किसी व्यापारी ने मुझे और सौ जोड़ी जूते बनाने का ऑर्डर दिया।" यह सुनकर उसकी पत्नी खुश होते हुए बोलती है, "मैंने कहा था न, चिंता मत कीजिये। ज़रूर कुछ अच्छा होगा!"
यह कहानी दर्शाती है, लखन की कड़ी मेहनत, लगन और सकारात्मक सोच उनकी सफलता की कुंजी बनी, जिसमें सब्र भी बराबर जुड़ा था। और कहते हैं न, कि सब्र का फल हमेशा मीठा होता है! इसलिए, हमें कभी मुसीबत से भागना नहीं चाहिए बल्कि यह सोचना चाहिए कि हम इससे कैसे बाहर निकल सकें। सूरज और छाया की तरह जीवन में विपदा आती है, बस जरूरत है तो हमें उसका सकारात्मकता, आत्मविश्वास और एक आशावादी सोच के साथ कड़ी मेहनत से उसका सामना करने की।
"शायद जीवन में ऐसा हो की बार बार अंधेरा हो लेकिन फिर भी आशा की एक किरण काफी है जो उस सुबह हो दर्शाती है जो जीवन को हंमेशा के लिए उजाले से भर दें।"
"Maybe life is such that it is dark again and again, but still there is a ray of hope which shows that the morning will fill life with light forever."
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